समुद्री वIणिज्य विभाग, मुंबई (मर्केंटाइल मरीन डिपार्टमेंट,मुंबई - एम.एम.डी. मुंबई) की स्थापना 1929 में तत्कालीन वाणिज्य विभाग के अधीन मर्चेंट शिपिंग एक्ट 1923 के प्रावधानों के तहत की गई थी। इसी समय अन्य समुद्री वIणिज्य विभाग (एम.एम.डी.) जिले भी अस्तित्व में आए। वे थे कराची, मद्रास, कलकत्ता और रंगून। तब से एम.एम.डी. मुंबई लगातार भारत के मर्केंटाइल मरीन की सेवा और विकास के लिए समर्पित है।
1949 में जब नौवहन महानिदेशालय (Directorate General of Shipping) का गठन हुआ, तब मर्केंटाइल मरीन डिपार्टमेंट के तीन जिलों मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को भारत सरकार के शिपिंग मंत्रालय के तहत नीति, नियम स्थापित करने के लिए एक केंद्रीकृत नियंत्रण प्राधिकरण के अधीन लाया गया।
समुद्री वIणिज्य विभाग, मुंबई के प्रथम प्रधान अधिकारी कैप्टन ई.वी.विश थे, जिन्हें 1 फरवरी, 1930 को नियुक्त किया गया था । 06.10.1951 को प्रथम बार भारतीय अधिकारी श्री बी.के. गुप्ता को प्रधान अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया।
एम.एम.डी. मुंबई का एक प्रमुख कार्य मर्चेंट शिपिंग एक्ट 1958 और कोस्टिंग वेसल्स एक्ट 1838 के तहत जहाजों को पंजीकृत करना है। जहाज ‘दयावती’ (आधिकारिक संख्या 153812), एम.एम.डी. मुंबई द्वारा अपनी स्थापना के बाद 16.10.1929 को पंजीकृत पहला जहाज था। वर्तमान में, एमएमडी मुंबई भारत में जहाजों का सबसे बड़ा रजिस्ट्रार है।
जहाजों के पंजीकरण के अलावा, एम.एम.डी. मुंबई और इसके अधीनस्थ कार्यालयों द्वारा की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) जहाजों का सर्वेक्षण एवं पंजीकरण, और पेट्रोलियम लाइसेंस
(ii) बंधकों का पंजीकरण और प्रमाणन संबंधित प्रमाणन (एम.एस.एम.डी., जी.टी.एल, डी.एम.एल.सी, सी.एस.आर.)
(iii) जहाजों का ऑडिट (आई.एस.पी.एस., आई.एस.एम एवं एम.एल.सी.)
(iv) फ्लैग स्टेट (एफ.एस.आई.) और पोर्ट स्टेट कंट्रोल (पी.एस.सी.) निरीक्षण
(v) सेवा प्रदाताओं का निरीक्षण और प्रमाणन (एल.एस.ए./ एफ.एफ.ए. /रेडियो/ आई.एम.एस.बी.सी./ आई.एम.डी.जी.)
(vi) एम.टी.आई. का निरीक्षण और प्रमाणन
(vii) बंदरगाहों और टर्मिनलों का निरीक्षण/ऑडिट (आई.एस.पी.एस., एन.एस.पी.सी., पी.ई.आर.एफ. एम.एल.सी)
(viii) आकस्मिक प्रतिक्रिया और दुर्घटना जांच में समन्वय
(ix) एस.एम. और एस.ई.ओ. के कार्यालयों के प्रशासनिक मामले, जिनमें आर.ओ. सेल्स मुंबई और जामनगर के कार्यालयों के प्रशासनिक मामले शामिल हैं
(x) नीतिगत मामलों पर डी.जी.एस को इनपुट